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Monday, February 6, 2012

 व्याधियों से बचाने में सक्षम है वनोपज
सागर। वन हमारे जीवन का आधार हैं। यही नहीं यहां पर पाई जाने वाली वनोपज जिंदगी को व्याधियों से बचाने में सक्षम है। वैसे ाी वर्तमान् युग हर्बल की ओर रू ा कर चुका है। चारों ओर हर्बल प्रोडक्ट्स की धूम है। चाय की पत्ती से लेकर आधुनिक प्रसाधन साम्रगी मेें हर्बल गुणों का ब ाान किया जा रहा है। जिससे साबित हो रहा है कि वनों के साथ-साथ वनोपज ाी उतनी ही महत्वपूर्ण है। सागर के उत्तर और दक्षिण वन मंडल क्षेत्रों में स्वास्थ्य की समृद्घि और कायाकल्प करने वाली वनोपज का ांडार मौजूद है। ऐसा दावा उत्तर वनमंडल अधिकारी एससी सिंघल ने किया है। उन्होंने बताया कि वनोपज की बहुतायत को दे ाते हुए यहां बेल के प्रसंस्करण की स ाावनाएं मौजूद हैं। जिससे वन क्षेत्रों के निवासियों सहित गरीब आदिवासी समूहों को आजीविका का सहारा मिल सकेगा। पिछले दिनों वन क्षेत्र में उपलब्धता के आधार पर बेल का शरबत बनाने पर विचार विमर्श किया है। फलस्वरूप क्षेत्र में बेल से शरबत बनाने के लिए एक प्रोजेक्ट मप्र लघु वनोपज ाोपाल को मंजूरी के लिए ोजा है। मंजूरी मिलने के बाद इस दिशा में कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा। जिससे आजीविका चलाने में वनवासी सक्षम बन सकेंगे। वनोपज के संग्रहण और बाजार में व्यापारी धरम के चार-पांच गुना मुनाफा कमा रहे हैं। वनोपज की सरकारी दरें नाममात्र की है। लेकिन सागर शहरी क्षेत्र में दक्षिण वन मंडल क्षेत्र की लापरवाही ने व्यापारियों को फलने फलने के अवसर दिए हैं। यही नहीं इस वन मंडल क्षेत्र में पिछले दो तीन वर्षों से अवैध संग्रहण, विवणन से समिति से लेकर रेंजर और डीएफओ की जेबें ारी जा रही है। इसके बाद ाी दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में प्रतिवर्ष ला ाों की हेराफेरी को अनदे ाा किया जा रहा है। सर्वाधिक चोरी आंवला, महुआ, गुठली की हो रही है। इस अनदे ाी में जिला प्रशासन सहित तमाम संबंधित लोगों की हिस्सेदारी है। ऐसा वि ाागीय सूत्रों का दावा है।
 इतना ही नहीं बेल का गूदा, चूर्ण, शरबत, स ाी कुछ पेट रोगों से लड़ने में मददगार है। वर्तमान् में मधुमेह रोग   के कारण बच्चों से लेकर बड़े तक पीड़ित हैं। इस रोग से लड़ने में बेल सहित वनोपज में शामिल जामुन, गुडमार, जैसे प्रकृति प्रदत्त वरदान शामिल हैं। ाानपान की प्रवृत्ति दूषित होने के कारण लग ाग स ाी लोग पेट के रोगों के साथ अमीबाइसिस से अत्याधिक पीड़ित रहते हैं। इसमें ाी बेल के उत्पाद रामवाण इलाज है। इन्हीं अमृत समान गुणों की वजह से डीएफओ उत्तर वन मंडल ने प्रोजेक्ट बनवाया है। हालांकि बाजार में बेल का मुरब्बा ाी प्रचलन में है। लेकिन डीएफओ सिंघल की राय में मुरब्बा शरबत की तुलना में कारगार नहीं है।
इसके पीछे कारण है कि मुरब्बा में फंगल का संक्रमण हो जाता है। जो फायदे की जगह नुकसान कर सकता है। इसलिए शरबत, चूर्ण जैसे उत्पाद सुरक्षित हैं। उन्होंने सुझाव दिया है कि मुरब्बा ारीदते समय सावधानी बरतना चाहिए। प्रोजेक्ट मंजूरी के बाद बाकायदा समिति को पंजीकृत कराकर वनवासी क्षेत्र में शरबत की युनिट लगवाएंगे। इन्हें केवल वि ाागीय रूप से तकनीकी मार्गदर्शन दिया जाएगा। इसके अलावा उत्पाद के विपणन की व्यवस्थाएं ाी जुटाई जाएंगी। इसी प्रकार वन क्षेत्र में चिरोंटा वनोपज ाी बहुतायत में उपलब्ध है। इसकी उपयोगिता दवाईयों के अलावा एसेंस बनाने में है। इस वनोपज की ाी काफी डिमांड है। इसलिए निकट ाविष्य में इसके विपणन की ठोस रूपरे ाा बनाई है। जिसके तहत  ारीदरारों से अग्रिम एमओयू कराया जाएगा। जिससे वन वि ााग पूर्णत: सुरक्षित रहेगा। वर्ष २००६ के अनु ाव को दे ाते हुए यह फैसला लिया है।
वैसे सागर में हर्र, बहेड़ा, मुहआ, आचार, गुठली, आंवला जैसी वनोपज की अच्छी पैदावार है। पलाश ला ा, कुसुम ला ा का उत्पादन ाी क्षेत्र में हो रहा है।  जिन्हें शासन की निर्धारित दरों पर बेचने की व्यवस्था है। साथ ही सरकार की मंशा है कि गरीब आदिवासियों का शोषण नहीं हो। उत्तर वन मंडल में डीएफओ के अनुसार वर्ष २०१० के तेंदुुपत्ता संग्रहण के बोनस का वितरण पूरा हो चुका है। करीब दस ला ा से अधिक राशि इसमें बांटी गई है। कुल २२ समितियों तेंदुपत्ता का संग्रहण कराती है।  साथ ही २५,००० के लग ाग  संग्राहकों ने २३ हजार ४०० मानक बोरा का संग्रहण किया है। क्षेत्र के बांदरी, शाहगढ़ में सर्वाधिक तेंदुपत्ता पाया जाता है।

सब ने जाना 'रजत बूंदों का राज'
 सागर । मानव जीवन और जल एक दूसरे के पर्याय हैं। बिना जल जीवन की कल्पना भी व्यर्थ होगी। राजस्थान की मरूभूमि पर जल की एक बूंद भी अमृत तुल्य है। बस इन बूंदों को सहेजना भर है। जल विशेषज्ञ अनुपम मिश्र ने इन्हीं रजत बूंदों को सहेजने का राज बताया। मौका था बाबूराव पिंपलापुरे की स्मृति में हुई व्याख्यानमाला का। वेद पाठ से शुरू हुआ कार्यक्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ा वैसे-वैसे आसमान से टपकती बूंदों से भरे तालाब की तरह रविन्द्र भवन भी धीरे-धीरे श्रोताओं से खचाखच भर गया। अतिथियों का स्वागत भवानी प्रसाद मिश्र और डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताओं की पंक्तियों के साथ किया गया। श्री मिश्र ने बताया कि राजस्थान में बादलों को ४० नाम दिए हैं। कम बारिश के बाद भी यह समाज को पानी की रजत बूंदों को बढ़े जतन से सहेजता है। तालाब के इनके अपने सामाजिक नियम हैं। तालाब की सीमा से बाहर जूता उतारे जाते हैं। भराव के मैदानों को रोजाना साफ रखा जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि रेलवे का गेटमैन लाटूराम ने एक-एक पैसा एकत्रित कर जन सहयोग से टांका (कुंआ) बनवाया। जिसमें ७० हजार लीटर वर्षा जल आता है। पूरे राजस्थान में भू जल स्तर काफी नीचे है। अधिकांश जगह खारा पानी निकलता है। इस कारण पूरा सूबा वर्षा जल पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि पाक सीमा के पास रामगढ़ भारत का अंतिम गांव है। यहां घर बनाने से पहले टांका बनाया जाता है। जल स्त्रोतों के रख रखाव के लिए सरकार के निर्देश या बोर्ड नहीं लगे हैं। यहां सामाजिक परिवेश ऐसा है कि यह खुद स्त्रोतों की पीढ़ी दर पीढ़ी रखरखाव और देखभाल करते हैं। यहां के जल स्त्रोत सैकड़ों साल चलते हैं। पानी के लिए इनका अपना अनुशासन है। उन्होंने कहा कि टांका और तालाब राजस्थान की जीवन धारा है। जयगढ़ के किले के पास बने तालाब में तीन करोड़ लीटर पानी आता है। यह तालाब पौने चार सौ साल से आसपास के लोगों की प्यास बुझा रहा है। तालाबों की हिफाजत के लिए लगे स्तंभों को गोवर्धन कहा जाता है। उन्होंने कहा कि विश्व में तेजी से पीने के पानी की कमी हो रही है। अगर वर्षा जल का सही प्रबंध किया जाए तो पानी की किल्लत समाप्त हो जाएगी। तालाब बावड़ी हमारे बुजुर्गों की उद्म इंजीनियरिंग का नमूना है। इन लोगों ने अपने सहज ज्ञान से यह सीखा है।
विकलांगता से शीघ्र मिलेगी निजात
सागर। अखिल भारतीय अस्थि संघके तत्वावधान में शिशु अस्थि रोग एवं जन्मजात पैरों की विकलांगता पर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन अस्थि रोग विविभाग बुंदेलखंडमेडीकल कॉलेज एवं सागर आर्थोपेडिक सोसायटी द्वारा किया गया।
कार्यशाला में विशेषज्ञ डॉ.डीके तनेजा, डॉ. विश्रा माधुरी,डॉ.एसबी शर्मा,सौरभ अग्रवाल,डॉ. विकास गुप्ता, डॉ. अनूप मल्होत्रा,डॉ. जीएस व्यास,डॉ. जितेन शुक्ला, डॉ. अरूण मुखर्जी शामिल हुए। कार्यशाला के आयोजक अध्यक्ष एवं मेडीकल कॉलेज के डॉ. दिनेश सोनकर द्वारा दी गई। बीएमसी के डीन डॉ.एसएस मिश्रा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इस प्रकार की कार्यशाला हेतु भविष्य में भी पूर्ण सहयोग प्रदान करने की बात कही। स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय संचालक डॉ. केके ताम्रकार ने उक्त सुविधा ग्रामीणस्तर तक पहुंचाने के उद्देश्य से संभाग के सभी शासकीय अस्थि रोग चिकित्सकों की उपस्थिति इस कार्यशाला में सुनिश्चित कराई।
कार्यशाला में एक सत्र पर जन्मजात पैरों के टेड़ेपन पर अस्थि रोग विशेषज्ञों द्वारा सूक्ष्म तरीके से जानकारी दी गई। यह जानकारी डॉ.जीएस चौबे ने दी। इस कार्यशाला में उपस्थित हुए हड्डी रोग डॉक्टरों के प्रशिक्षित होने से इसका लाभ छोटे शहर एवं कस्बों के मरीजों को मिलेगा। कार्यशाला के कॉर्डीनेटर डॉ. आलोक अग्रवाल द्वारा बताया गया कि इस नयी विधि से पैरों का टेड़ापन जल्दी और कम खर्चे तथा बगैर आपरेशन के ही ठीक हो जाता है। सचिव मनीषझा ने बताया कि कार्यशाला से अस्थित रोग डॉक्टरों को लाभ होगा। संचालन डॉ.अरूणसराफने किया। आयोजन समिति के सदस्य डॉ. सत्यपाल जैन,डॉ.आरके खरे,डॉ.अखिलेशजैन द्वारा इस कार्यशाला में महती भूमिका निभाईगई।
कार्यशाला में आईएमए के पूर्व प्रांताध्यक्ष डॉ.जीवन लाल जैन,डॉ.एसएम सिरोठिया,डॉ.एनपी शर्मा सहित अनेक चिकित्सक उपस्थित रहे। कार्यशाला में इस विधि का प्रयोग मरीजों एवं मॉडलो पर किया गया। इस विधि से इलाज के लिएविशेष क्लीनिक प्रति मंगलवार को बुंदेलखंडचिकित्सा महाविद्यालय में संचालित की जाती है।

 नाम किए जायेंगे सार्वजनिक
सागर/ नगर निगम आधिपत्य की राजीव नगर कालौनी खांडेकर काम्पलैक्स एवं बसुंधरा काम्पलैक्स के बकायादारों द्वारा नगर निगम की भू-भाटक राशि जमा न करने पर उनके नाम समाचार पत्रों में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित  किए जाऐंगे।आयुक्त सूर्यभान सिंह ने उपायुक्त बीएसचौहान संपत्ति अधिकारी राजेश  सिंह व राजस्व अधिकारी बृजेश  तिवारी को सख्त निर्देष देते हुए कहा है कि निगम की बकाया राशि एक सप्ताह के अंदर बकायादारों से जमा कराऐं तथा उनके नाम समाचार पत्रों में प्रकाशित कराएँ । अन्यथा आप लोगों के विरूद्ध अनुशा  सनात्मक कार्यवाही की जावेगी।संपत्ति अधिकारी राजेश  सिंह ने बताया कि निगम की राजीव नगर खांडेकर काम्पलैक्स एवं बसुंधरा काम्पलैक्स के लगभग 350 बकायादारों को भू-भाटक जमा करने हेतु नोटिस जारी किए जा चुके है। एक सप्ताह के अंदर राशि जमा न करने वालों के विरूद्ध भवन एवं प्लाट के निरस्तिकरण की कार्यवाही प्रारंभ कर दी जावेगी।नगर निगम आधिपत्य की दुकानों का किराया जमा न करने वाले दुकानदारों के विरूद्ध राजस्व विभाग अतिक्रमण शाखा  और बाजार विभाग द्वारा  कुल 6 लाख25 हजार रूपये की बकाया बसूली की गई।

 सांसद ट्राफी का आयोजन 8 से

सागर /सांसद ट्राफी कास्को बाल क्रिकेट टूर्नामेंट  का आयोजन 4 फरवरी से आयोजित होगा। सांसद ट्राफी के आयोजन के संबंध में लोककर्म सभापति राज बहादुर सिंह ने बताया कि इस प्रतियोगिता का आयोजन खेल प्रतिभाओं को उभारने एवं उत्साहवर्धन हेतु सांसद ट्राफी कास्को बाल प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है  जिसमें सागर संसदीय क्षेत्र के क्रिकेट टीमों को आमंत्रित किया गया है इच्छुक टीमें दिनांक 08 फरवरी से 19 फरवरी 2012 तक आयोजित होना है। सांसद ट्राफी का आयोजन खेल परिसर एवं नगर निगम स्टेडियम दो स्थानों पर किया जावेगा। इसी तारतम्य में आयोजन समिति ने खेल परिसर का निरीक्षण किया एवं मैदान का जायजा लिया।    राज बहादुर सिंह ने बताया कि सागर संसदीय क्षेत्र 8 विधान सभा की 64 टीमों द्वारा प्रतियोगिता में भाग लिया जा रहा है। सांसद ट्राफी के आयोजन का उद्देष्य सागर संसदीय क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को एक मंच प्रदान करने एवं श्रेप्ठ खिलाड़ियों आगे बढ़ाने हेतु एक बढ़े स्तर पर कास्को बाल क्रिकेट टूरनामेंट का आयोजन किया जा रहा है। पिछले कई वर्पों से सागर संसदीय क्षेत्र की खेल प्रतिभाओं को आगे लाने का प्रयास किया गया है एवं सागर के क्रिकेट से लगाव रखने एवं श्रेप्ठ प्रदर्षन करने वाले खिलाड़ियों को उत्कृप्ट मंच प्रदान कराने में महती भूमिका अदा की है।निरीक्षण के दौरान राज बहादुर सिंह लक्षमण सिंह नईम खान राजेष पंडत राज कुमार नामदेव मिलिंद देउस्कर एवं आयोजन समिति केअन्य सदस्यगण उपस्थित रहे।