ननि सागर में मचा गालियों के साथ हंगामा
*निगम परिसर में कर्मचारियों
ने फिल्म जैसा दृश्य पैदा किया,
*आयुक्त की सलाह मंहगी पड़ी
लेखापाल को
मनोज शुक्ला
सागर। कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रहे गए मानो ऐसा लग
रहा था जैसे हम सभी किसी हिन्दी फिल्म का एक्शन ड्रामा देख रहे हों। हर तरफ से मां
बहिन की गालियों के स्वर गूंज रहे थे। हर चेहरे पर आक्रोश स्पष्ट झलक रहा था। सभी
ने जैसे ठान लिया था कि आज या तो लेखापाल
रहेगा या वे कर्मचारी रहेंगे। कई बार तो ऐसा लगा कि शोरगुल, गाली गलौच के बीच लेखापाल को लतयाया
जाएगा। लेकिन कुछ मर्यादाओं और कुछ बीच-बचाव की उम्मीदों ने लेखापाल को बचा लिया।
लेकिन जिस तरह फिल्मों घटित होता है ठीक वैसा ही गुरूवार की दोपहर को घटित हो गया।
जिससे साबित हुआ कि विधि के विधान को कोई टाल नहीं सकता है। मारपीट से बचने लेखापाल रामाश्रम भोजनालय खाना खाने चले गए
जहां पर खाना खाने पर विवाद ने उनके साथ वही स्थिति निर्मित कर दी जिसकी वजह से वे
नगर निगम कार्यालय को छोडक़र भागे थे।
रामाश्रम में भोजन करने वाले एक आदमी ने
लेखापाल के साथ जोरशोर से पिटाई की। इस तरह जो इच्छा कर्मचारी पूरी नहीं कर सके थे
वह इच्छा भगवान ने भोजनालय में किसी दूसरे से पूरी करा दी। यह नजारा नगर निगम के
लेखापाल शरद बरसैंया के साथ पूरे परिसर में देखने मिला।
गौरतलब है कि नगर निगम में लेखापाल शरद
बरसैंया के प्रति सभी कर्मचारियों में गुरूवार के दिन जरूरत से ज्यादा आक्रोश
देखने मिला। सभी शाखाओं के कर्मचारी एक स्वर में लेखापाल को हटाने के नारे लगा रहे
थे। निगम के गेट से लेकर लेखापाल के कक्ष तक अभूतपूर्व हंगामा कर्मचारियों ने
किया। आज के दिन कर्मचारियों ने सभी मर्यादाओं को तोडक़र लेखापाल सहित आयुक्त एसबी
सिंह और स्थापना शाखा में पदस्थ दामोदर ठाकुर के खिलाफ अत्याधिक जहर उगला। मामला
यह था कि एक तो निगम के सभी कर्मचारियों को 17 दिन गुजरने के बाद वेतन मिला। वह भी
25 प्रतिशत कम था। इसलिए कर्मचारियों के बीच इस कम राशि को लेकर जबरदस्त आक्रोश
उत्पन्न हो गया। तुरंत फुरंत कर्मचारी संघ के नेता माधव कटारे के साथ सभी ने इस
मसले पर चर्चा की। बाद में सभी लोग एकत्रित होकर बरसैंयां के चेम्बर की ओर बढ़े।
यहां पर जब 3-4 कर्मचारियों ने आक्रोश में आकर बरसैंया को मारने के लिए हाथ तक उठा
लिए। लेकिन कुछ लोगों की समझाईश के बाद मामला शांत हो गया। लेकिन कर्मचारी अंतत:
बरसैंया को हटाने की जिद पर अड़े रहे। बात इतनी बढ़ गई कि बरसैंया बोले कि कागज
लाओ हम अभी इस्तीफा दे देंगे। लेकिन लालच और भ्रष्टाचार में डूबे लेखापाल ने फिर
गिरगिट की तरह रंग बदला और कहने लगे कि यदि माधव भैया और बिल्थरे जी कहेंगे तो हम
इस्तीफा दे देंगे। जबकि माधव कटारे वहीं पर मौजूद थे और उन्होंने स्पष्ट रूप से कह
दिया था कि दैवेभो कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित पूरा वेतन दिया जाए। तभी कोई
बात होगी। इसके अलावा कर्मचारी, आयुक्त
एसबी सिंह को बुलाने के लिए लेखापाल से बार-बार गाली-गलौज के सहित बुलाने कहते
रहे। कुछ ही देर बाद आयुक्त नगर निगम में आए उन्होंने हंगामे को देखकर कहा कि
कर्मचारियों में से चार-पांच लोग उनके चेंबर में आकर चर्चा कर लें। लेकिन माधव
कटारे इतने ज्यादा आक्रोश में थे कि वे इस मुद्दे पर आयुक्त के कक्ष में जाने के
इच्छुक नहीं दिखे। हालांकि उन्होंने आयुक्त से सभाकक्ष के बाहर ही स्पष्ट रूप से
कह दिया था कि 263 कर्मचारियों को नियमित किया जाए। बांकी उन्हें कुछ नहीं कहना
है।
उल्लेखनीय है कि नियमितीकरण के लिए एक
कमेटी गठित की गई है। उसमें स्थापना के दामोदर ठाकुर सहित लेखापाल और अन्य लोग तरह
तरह के अड़ंगे लगा रहे हैं। जिससे कर्मचारी प्रतिदिन हताशा का शिकार बन रहे हैं।
फलस्वरूप इसी हताशा ने निगम परिसर में हंगामा खड़ा कर दिया है। एक तरफ कर्मचारी
कहते हैं कि लेखापाल आयुक्त से विवाद कराना चाहता है और अपनी कलम दैवेभो कर्मियों
के मामले में नहीं फंसाना चाहता है। जबकि कुछ कर्मचारी और ठेकेदार आयुक्त के
सलाहकार बने हुए हैं। अयुक्त कर्मचारियों की वजाय ठेकेदारों के इशारों पर कर्मचारी
हितैषी निर्णय ले रहे हैं। यह भी बड़ा ही आपत्तिजनक मामला है। यही नहीं कर्मचारी
संघ के एक गुट ने आयुक्त से चर्चा की। लेकिन बाद में आयुक्त ने एक कर्मचारी से कहा
कि यदि इसी प्रकार का रवैया रहा तो वे नियमितीकरण में कोई भी व्यवधान पैदा कर सकते
हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि आयुक्त एसबी सिंह के कार्यकाल में हाईकोर्ट ने 83
दैवेभो कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया था। लेकिन उन्होंने केवल 6-7
कर्मचारियों का पैसे लेकर भला किया। हालांकि जिन्हें नियमित किया गया है वे भी
योग्य नहीं थे। कोर्ट को गुमराह करके उनके पक्ष में संबंधित शाखाओं के प्रभारियों
ने ब्यान दिए थे। जिससे उनका रास्ता साफ हो गया था।
कर्मचारियों में स्थापना प्रभारी
दामोदर ठाकुर के खिलाफ भी आक्रोश था इसलिए माधव कटारे और संघ सदस्यों के बीच
उन्हें बुलाकर नियमितीकरण में बाधक नहीं बनने की चेतावनी दी गई। साथ ही इस शाखा
में पदस्थ एक महिला कर्मी भी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के पक्ष में नहीं है। इस
तरह वे भी अपनी टांग अड़ाए हुए हैं। निगम में कर्मचारियों के बीच मतभेद पैदा करने
में आयुक्त भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे इस हंगामे के लिए लेखापाल के
साथ उतने ही जिम्मेदार हैं जितने की अन्य कर्मचारी क्योंकि करीब 25 लाख से अधिक की
राशि मकान किराया और भत्ता आदि बढऩे से इस बार कर्मचारियों को अधिक वेतन मिलना था।
लेकिन आयुक्त ने भी लेखापाल से सभी कर्मचारियों की 25 प्रतिशत राशि कम भुगतान करने
का मौखिक आदेश दिया। जिससे बिना किसी जानकारी के कम राशि मिलने के बाद कर्मचारियों
ने हंगामा खड़ा कर दिया दूसरी ओर आयुक्त ने सफाई कर्मियों को पूरा वेतन दिलाने
आदेशित किया था। इस तरह निगम में बैठे अधिकारी, कर्मचारी
अपने अपने तरीके से खेल करवा रहे हैं।
कर्मचारियों ने खेल महोत्सव, सभाकक्ष, आयुक्त कक्ष आदि पर खर्च की गई अनाप शनाप राशि पर भी इसी दौरान
आपत्ति दर्ज कराई। उनका कहना था कि इन सब खर्चों की वजह से उन्हें समय से वेतन
नहीं मिला है। इस प्रकार का व्यवहार आयुक्त के खिलाफ जाता है। पूरे परिसर में करीब
करीब दो घंटे तक हंगामा होता रहा। लेकिन महापौर अनीता अहिरवार निगम में झांकी तक
नहीं। प्रतिनिधि करीब सवा पांच बजे तक
परिसर में मौजूद रहा। इस दौरान भी महापौर गायब ही रहीं। जबकि इतना हंगामा होने के
बाद उन्हें अपनी परिषद की खोज-खबर जरूर लेना थी। केवल पूरे मामले के दौरान नरेश
यादव इत्फाक से चक्रेश सिंघई, नईम
खान और कुछ चापलूस कर्मचारी, ठेकेदार
आयुक्त के ईदगिर्द घूमते रहे। यही नहीं एक तरफ नेता प्रतिपक्ष चक्रेश सिंघई, बाहर से तो कर्मचारियों के साथ और निगम
भ्रष्टाचार के खिलाफ दिखते हैं लेकिनवे भी अपनी स्वार्थसिद्धी के लिए आयुक्त के
लिए यह सलाह देने से नहीं चूके कि जब तक हंगामा करने वाले कर्मियों के खिलाफ धारा
353 का उपयोग नहीं करेंगे। तब तक यही होता रहेगा। हालांकि यह सलाह तो उन्होंने बाद
में दी लेकिन शायद कर्मचारियों को पहले से मालूम था कि चक्रेश सिंघई उनके खिलाफ
हैं। इसलिए उनकी गैरमौजूदगी में ही उनके चेंबर को खोलकर गाली देकर सभी ने अपनी
अपनी भड़ास निकाल ली थी।
लेखापाल ने रची साजिश
जब कर्मचारी आक्रोश में आकर उनके चेंबर पहुंचे मारपीट करने उतारू हुए तो
कर्मचारियों ने लेखा शाखा को बंद करके बाहर आने कहा। तब उन्होंने पार्षद नरेश यादव
और एक अन्य कर्मचारी मौजूदगी में शाखा की कुर्सी उठाकर कांच के पार्टीशन पर मारी
फिर दोनों टेबल के कांच उठाकर पटक दिए। जिससे दोनों कांच चकनाचूर हो गए। साथ ही
उन्होंने अपने मोबाइल से कर्मचारियों द्वारा की गई गाली-गलौच की रिकॉर्डिंग की।
साथ ही मीडिया का डर भी दिखाया। इस प्रकार उन्होंने कर्मचारियों के आक्रोश को इस
प्रकार की साजिस रचकर उनके खिलाफ पुलिस का मामला बनवाने का प्रयास किया। इसके बाद
वे नगर निगम छोडक़र बाहर चले गए। कुछ
पार्षदों ने आरोप लगाए हैं कि जो अखबार शहर को लीड कर रहा है उसमें निगम का बचाव
किया जाता है।
एस्सेल का एग्रीमेंट है संदिग्ध
बिजली कर्मचारी 20 जनवरी को
करेंगे विरोध प्रदर्शन
मनोज शुक्ला
सागर। पिछले दिनों शहर संभाग को बिजली
कंपनी एस्सेल के हवाले कर दिया गया है। इस निजीकरण प्रक्रिया की वजह से बिजली
कर्मचारी सहित उनके प्रतिनिधि महासंघ ने पहले तो कोई विरोध दर्ज नहीं कराया। लेकिन
अब वे इस कंपनी की खिलाफत करने के मूड में आ गए हैं। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर
उज्जैन में भी इस कंपनी का लगातार विरोध हो रहा है। लेकिन सरकार बिजली वितरण
कंपनियों के निजीकरण में लगी है। कांग्रेस सरकार ने पहले बिजली बोर्ड के लिए
सरकारी कंपनियों में बदलकर जनता की गाड़ी कमाई को इनके हाथों में सौंप दिया। अब
भाजपा सरकार अपने हितों की खातिर सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों के हाथों में
अरबो रूपए की संपत्ति सौंप रही है। इस प्रकार जनता के धन पर निजी कंपनियां ऐश कर
रही हैं। जबकि इस प्रकार संपत्ति को हवाले करने के बाद भी बिजली कर्मचारियों ने
कोई विरोध नहीं किया। चूंकि बिजली कर्मचारियों में सर्वाधिक नेता भाजपा से जुड़े
अनुसंगी संगठनों से वास्ता रखते हैं। जिसकी वजह से वे कुछ दिनों तक विरोध को लेकर
असमंजस्य में रहे। हालांकि जब भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध बिजली कर्मचारी महासंघ
की नींद खुल चुकी है। इस महासंघ के किशोरी लाल रैकवार ने कंपनी का विरोध करने का
निर्णय ले लिया है। फलस्वरूप जहां पिछले दिनों कांग्रेस के एक नेता ने बिजली कंपनी
के खिलाफ प्रदर्शन किया था वहीं अब भाजपा सरकार के संगठनों से जुड़े लोग भी एस्सेल
का विरोध करने पर उतारू हैं। जिससे लगने लगा है कि कंपनी को निकट भविष्य में वितरण
व्यवस्था पर संकट का सामना करना पड़ेगा। वैसे कंपनी ने शहर संभाग के परिसर पर बहुत
बड़ी राशि खर्च करके कायाकल्प करने की मंशा जाहिर की है। लेकिन परिसर को बदलने से
शहर की बिजली वितरण व्यवस्था दुरूस्त नहीं हो पाएगे। आज भी विद्युत उपभोक्ता बिजली
बिलों में गड़बड़ी, समय वे समय की कटौती को लेकर परेशान
हैं। इसके अलावा उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए कंपनी के कर्मचारी, अधिकारी फिलहाल तो उपभोक्ताओं से
ठीक-ठाक व्यवहार कर रहे हैं। यह व्यवहार भी वे मजबूरी के तहत करते हैं। चूंकि
कंपनी के हैंडओवर होते ही विरोध के स्वर फूटने लगे थे। जिससे एस्सेल कंपनी के
प्रबंधन ने रणनीति में ढील बरतना शुरू की है। वैसे कंपनी को जल्दबाजी भी नहीं है
क्योंकि कंपनी के साथ 15 वर्षों का सरकार का करार हुआ है।
इसलिए वे निश्चिंत हैं यदि एक बार उपभोक्ताओं को अपने बस में कर लिया तो फिर 15 वर्षों तक उनका खून चूंस सकते हैं।
ये कैसा गोलमाल!
सरकार में एस्सेल कंपनी के साथ किसी भी
प्रकार का करार नहीं किया है। गौरतलब है कि जब पूर्वी क्षेत्र वितरण कंपनी ने
नीलामी की थी उसके बाद नीलामी में सफल बोलीदारों में स्मार्ट बायरलेस लिमि. कंपनी
के लिए सीएमडी ने पत्र लिखा है। जिससे स्पष्ट है कि एस्सेल कंपनी सफल बोलीदार नहीं
थी। फिर भी जब सागर में नगर संभाग की कमान एस्सेल ने संभाली तब बिजली कंपनियों के
अधिकारियों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। इस तरह स्मार्ट वायरलेस लिमि. और एस्सेल
के बीच का गोरखधंधा अभी तक अबूझ पहेली है।
भर्ती में धांधली
एस्सेल बिजली कंपनी विधिवत शहर संभाग
का प्रभार संभालने के काफी पहले से सागर में जमीन हुई थी। उन्होंने इस तरह कंपनी
की जरूरत की हिसाब से कर्मचारियों की चुपचाप भर्ती कर ली। किसी भी प्रकार का
विज्ञापन निकालकर कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की है जो एक प्रकार से शहर के
होनहार लोगों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। इसी प्रकार कर्मचारियों के विरोध को
शांत करने के लिए बिजली विभाग के कर्मचारियों के नाते-रिश्तेदारों सहित सेवानिवृत
कर्मचारियों को अपनी कंपनी में प्रश्रय दिया है। जिससे कुछ दिनों तक विरोध के स्वर
शांत रहे। हालांकि यह उपाय भी अब निरर्थक साबित होने वाला है। बिजली कर्मचारी
महासंघ कंपनी की जोरदार तरीके से खिलाफत करेगा। ऐसा दावा महासंघ ने किया है।
झूठे हैं एस्सेल के दावे
मनोज शुक्ला
सागर। करीब डेढ़ महिने से मप्र पूर्वी
क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का कामकाज
एस्सेल ग्रुप देख रहा है। लेकिन यह निजी कंपनी शहर के उपभोक्ताओं के बीच अपनी छबि
बनाने के लिए झूठे दावे कर रही है। हालही में कंपनी की ओर से दावा किया गया है कि
बिजली कंपनी ने विद्युत मंडल को तीन करोड़ 77
लाख की वसूली उगाहकर दी है। साथ ही यह भी कहा गया है कि विद्युत मंडल को
उपभोक्ताओं से बिल वसूली में पसीना आ जाता था। यही नहीं तमाम प्रयासों के बाद बिल
वसूली में उन्हें सफलता नहीं मिलती थी। जबकि विद्युत मंडल के अधिकारियों का दावा है कि एस्सेल कंपनी द्वारा वसूला गया राजस्व
कम है। कार्यपालन यंत्री एसके गुप्ता के अनुसार एस्सेल कंपनी के अधिग्रहण से पहले विद्युत मंडल पांच करोड़
का राजस्व प्रतिमाह वसूल कर रही थी। इस तरह देखें तो कंपनी के दावे खोखले साबित हो
रहे हैं। इतना ही नहीं कंपनी की ओर से जारी विज्ञप्ति में विद्युत मंडल पर उल्टे
सीधे आरोप भी लगाए हैं। जिनसे ऐसा लग रहा है कि कंपनी शहर के उपभोक्ताओं को अच्छी
सेवा देने के बजाय सरकारी बिजली कंपनी की साख को बट्टा लगाने आई है। आश्चचर्यजनक
तथ्य यह है कि जो आरोप लगाए गए हैं। उनकी भाषा बड़ी ही असभ्यतापूर्ण है। जिससे
अंदाजा लगता है कि कंपनी में कार्यरत कर्मचारी पढ़े लिखे ही नहीं हैं। इसके अलावा
विज्ञप्ति में यह भी दावा है कि अब अगले महीने से एस्सेल अपने तरीके से वसूली
करेगी। यह कहना भी बड़ा ही हास्यायप्रद लग रहा है क्योंकि वसूली तो नियम अनुसार ही
होगी। इस तरह एक तरफ सरकारी बिजली कंपनी सहित उपभोक्ताओं के मन में भी डर पैदा
किया जा रहा है। जबकि एस्सेल ग्रुप की पालसी में केवल उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा ही
नहीं देना है वरन शहर के भीतर मौजूद जनता को सामाजिक, आर्थिक रूप से खड़ा भी करना है। जिससे
उनके जीवन स्तर में बदलाव आ सके और वे अच्छे से जीवन-यापन कर सकें। लेकिन कंपनी
में बैठे अधिकारी कर्मचारी इस लक्ष्य की अनदेखी करने में लगे हैं जो बेहद ही
आश्चर्यजनक है। इतना ही नहीं सरकारी बिजली कंपनी के अधिकारी एस्सेल के अनर्गल
प्रलाप पर अपनी ओर से आपत्ति भी दर्ज नहीं करा रहे हैं। जबकि निजी कंपनी सरकार की
छबि को धूमिल करने में लगी है।
कांग्रेस ने जताया
आक्रोश
जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष रेखा
चौधरी ने एस्सेल विद्युत वितरण कंपनी द्वारा किए जा रहे उपभोक्ताओं के शोषण एवं
मनमानी पर तीखा आक्रोश जताया है। उन्होंने कंपनी को दिए गए ठेके को समाप्त करने की
मांग करते हुए उग्र जन-आंदोलन की चेतावनी दी है। साथ ही उन्होंने कहा है कि
सार्वजनिक क्षेत्र की इस अत्यावश्यक सेवा में बिजली की मंहगी दरों के बाबजूद आम
गरीब व मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं से बिजली बिलों की मनमानी वसूली की जा रही है।