भाजपा की कलह से
बदलेंगे
कांग्रेस की जीत के समीकरण
मनोज शुक्ला
सागर। कांग्रेस अभी तक केवल अपनी गुटबाजी को बढ़ावा देने में लगी है। जबकि
भाजपा इसी बीच घर-घर भाजपा का संदेश देती फिर रही है। साथ ही वह नव मतदाता जैसे सम्मेलनों के द्वारा भी सक्रिय बनी है,जिससे स्पष्ट
है कि टिकट वितरण नहीं होने के बाद भी सागर से
भाजपा को तीसरी पारी खिलाने तैयारी शुरू कर दी है। फिर भी नई परिस्थितियों
ने कांग्रेस में सीटें बढ्ने की
उम्मीदे हिलोरे ले रही हैं। साथ ही बिना
बात के आधी जंग जीत ली है,कांग्रेस अपनी नहीं भाजपा की कलह और अपने ही प्रत्याशियों की जग हँसाई के
कारण कुछेक और सीटें कांग्रेस अपने दामन में समेट सकने में सक्षम हो गई है।
इतना ही नहीं अप्रत्यक्ष हरी झंडी मिलने के बाद
मौजदा सागर विधायक शैलेंद्र जैन,नरयावली प्रदीप
लारिया,खुरई से सांसद भूपेंद्र सिह
ने कमर कस ली है। जबकि पुत्रमोह और अति आत्मविश्वास ने रहली में गोपाल भार्गव ने अपने प्रचार को
गति नहीं दी है। हालांकि सांसद ने अपनी छवि को स्वयं संदिग्ध बनाने के बाद खुरई से
चुनाव का बिगुल बजा दिया है,वैसे जैसे ही उन्होने अपने आप को यहाँ से दावेदार बताया तो भाजपा में
निराशा छा गई थी और भाजपाइयों ने वर्तमान कांग्रेस विधायक के साथ खड़े होने हद तक विरोध दर्ज
कराया। अब आखिर वे कैसे सहमत है आगे चिंतन का विषय है फिर भी यह बताना जरूरी है कि
पिछला विस चुनाव भी वे यहाँ से हार चुके हैं।
इस बार तो उन्होने हद कर दी है सारी विस क्षेत्रों में अपने ही समर्थकों को झटका देने भी चूक नहीं की है। ऐसे में भाजपा की तीसरी पारी पर सांसद ने संकट के बादल अभी से खड़े कर दिये हैं। इसी प्रकार भाजश से जुड़े एक हारे प्रत्याशी ने सागर में खिलाफत का मोर्चा खोल रखा है, हालांकि वे पर्दे के पीछे से यह सब कर रहे। फिर भी चुनाव आचार संहिता के लिहाज से बिना प्रकाशक मुद्रक के द्वारा जारी पंपलेटों पर प्रशासन चुप बैठा है। नरयावली विधायक पर भी इसी प्रकार प्रायोजित दुष्प्रचार किया फलस्वरूप वे सकते में आ गए। दोनों को ही ऊपर से हरी झंडी मिलने से विरोधी औंधे मुंह गिर पड़े हैं
लेकिन कोशिश करने वालों की कभी
हर नहीं होती की तर्ज पर वे निराश नहीं हैं।
इस बार तो उन्होने हद कर दी है सारी विस क्षेत्रों में अपने ही समर्थकों को झटका देने भी चूक नहीं की है। ऐसे में भाजपा की तीसरी पारी पर सांसद ने संकट के बादल अभी से खड़े कर दिये हैं। इसी प्रकार भाजश से जुड़े एक हारे प्रत्याशी ने सागर में खिलाफत का मोर्चा खोल रखा है, हालांकि वे पर्दे के पीछे से यह सब कर रहे। फिर भी चुनाव आचार संहिता के लिहाज से बिना प्रकाशक मुद्रक के द्वारा जारी पंपलेटों पर प्रशासन चुप बैठा है। नरयावली विधायक पर भी इसी प्रकार प्रायोजित दुष्प्रचार किया फलस्वरूप वे सकते में आ गए। दोनों को ही ऊपर से हरी झंडी मिलने से विरोधी औंधे मुंह गिर पड़े हैं
इस प्रकार भाजपा पर जिले में हर के हालात पैदा करने वाले उन्हीं के दामन
में बैठे हैं। ऐसे में कांग्रेस ने बिना
प्रयास के आधी जंग जीत ली है। सांसद के सहयोग रूपी असहयोग से सबसे ज्यादा पीडि़त
सुरखी विस के भाजपाई हैं यहाँ से अनेक दवादारों को उन्होने आश्वासन दिया,पिछला चुनाव हारे
राजेंद्र सिंह को पूर्ण आश्वस्त किया। फलस्वरूप घोषणा के पहले ही रहतगढ़ से प्रचार
शुरू कर दिया। अंतत: सुरखी को कांग्रेस से
मुक्त कराने के नाम किसी पारुल साहू को चुनावी समर में लडऩे उतार दिया है। एक तरफ
देवरी विधायक भानु राणा का विरोध स्थानीयता की वजह से हो रहा है, लेकिन दूसरी ओर
भूपेंद्र सिंह,पारुल साहू भी जिन
क्षेत्रों से आश्वस्त किए हैं वे स्थानीय नहीं हैं। शायद इन दोहरे मानदंडों का परिणाम
भी तीसरी पारी पर ग्रहण लगा सकता है।
कांग्रेस अभी तक प्रत्याशियों के नामों से खेलने में लगी है सागर से संतोष पांडे,स्वदेश जैन, सुशील तिवारी आदि,,देवरी से डॉ
वीरेंद्र लोधी,रामजी दुबे,अनीता मिश्रा आदि के नाम चर्चाओं में शुमार हैं।
लेकिन इनमें से केवल सुशील तिवारी और लोधी समीकरण की वजह से डॉ वीरेंद्र में जीतने
की संभावनाएं हैं। शेष दावेदार बमों में बारूद ही बहुत पहले खत्म हो चुका है,केवल चुनावी
खर्च उठाने के लिय कुछ नामों और सेठ
परिवारों को जबरन लालच देकर वर्षों बाद उनको माँदों से बाहर निकला है। ऐसे में यह
कागजी शेर कहाँ तक और कब तक कांग्रेस के साथ चलेंगे कहना मुश्किल है। मात्र
नरयावली में पूर्व मंत्री सुरेन्द्र चौधरी जीतने की क्षमता रखते हैं,उनके नाम पर
करीब-करीब मुहर लग चुकी है। बीना,रहली में भी अच्छे प्रत्याशी का टोटा है। खुरई में मौजूदा विधायक अरुणोदय
चौबे की सक्रियता और भूपेंद्र के विरोध ने कांग्रेस के कब्जे बरकरार रखनेमें अपनी भूमिका बयां कर दी है।
कौन पार लगाएगा गोविंद की नैया ?
सुरखी के हालात अभी तक ठीक थे लेकिन पारुल साहू के नाम ने करीब-करीब
गोविंद राजपूत के हैट्रिक सपने पर लगाम
लगा दी है। वैसे वे अपने आका की दम पर राहुल गांधी की सभा रहतगढ़ में कराने में कामयाब हो चुके हैं। फिर भी संकट गहरा गया है एक तरफ एक रुपए
के धन से चुनाव लड़ा जाएगा तो दूसरी ओर 500 रुपए के धन से
अर्थात एक प्रतिशत और पाँच सौ प्रतिशत के मुक़ाबले पर जंग शुरू होना है। ऐसे में
अर्जुन की नैया तो गोविंद ने महाभारत में पर करा दी थी लेकिन कलयुग में चुनावी
महाभारत में गोविंद की नैया कौन पार
लगाएगा। यह यक्ष प्रश्न सुरखी विस में गूंजने लगा है। वैसे भी जिले की यह सीट
इकलौती है जिस पर किसी भी दल ने कभी भी बाहरी प्रत्याशी का विरोध नहीं किया है,इसके अलावा कोई भी
दल तीन बार जीत दर्ज नहीं करा सका है।
इसी प्रकार रहली गोपाल भार्गव के पुत्र ने समीकरण बदलने में भूमिका निभाई है, फलस्वरूप यहाँ के कांग्रेसी उत्साह में आते जा रहे हैं। इसके अलावा इक ओर
प्ररिवारवाद का विरोध तो दूसरी ओर अपने परिवार चिंता ने उनके दोहरे चरित्र को
उजागर कर दिया है। इस वजह से भी जिन
कांग्रेसियों के कारण पंडित भार्गव जीतते रहे हैं वे उनके खिलाफ एकजुट होने के मूड
में आ चुके हैं। इन हालातों में उनका ऊंट किस करवट बैठ जाए कहना मुश्किल बंता जा
रहा है। वैसे कांग्रेश के यहाँ से एक
हारे प्रत्याशी ने उन पर भ्रष्टाचार के
आरोप लगाए हैं। यहाँ का अनुसूचित
जाति-जनजाति वर्ग सहित कुर्मी समाज पीडि़त है,यह सब बातें इस बार विशेष रूप से विस क्षेत्र में चल रही हैं क्योंकि
कांग्रेस जो प्रत्याशी हारा था उसके समाज के सर्वाधिक वोटर है। यदि अजा-जजा वास्तव
में असंतुष्ट है है तो निश्चित ही कांग्रेस की जीतने राह आसान नजर आ रही है। देवरी
से भानुराणा को टिकट नहीं मिला तो कमजोरी
के बाद भी कांग्रेस प्लस में जा सकती है।
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